संगोष्ठी के द्वितीय विशिष्ट वक्ता डॉ चंद्रकांत दत्त शुक्ला जी ने "सुसंस्कृत समाज की अवधारणा" विषय पर अपने विचार को व्यक्त किया. विशिष्ट वक्ता डॉ शुक्ल ने कहा कि हम भारतीय हैं और हमारी संस्कृति सनातन है जो हमारे ऋषि मुनियों -पूर्वजों विद्वानों की सारस्वत साधना ज्ञान परम्परा से अलंकृत है. इसी श्रेष्ठ परम्परा की आत्मा संस्कृत है इसलिए सभी लोग स्वयं को सुसंस्कृत बनाए, जब स्वयं सुसंस्कृत बनेंगे तभी परिवार और समाज भी सुसंस्कृत होगा. यह तभी संभव है जब हम सभी स्वयं देवभाषा संस्कृत को आत्मसात करेंगे.
महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय ने कहा कि गुरु कुम्हार के सदृश होता है जो कच्चे घड़े के अन्दर हाथ रखकर घड़े को सही स्वरूप प्रदान करता है. उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य को कायिक-वाचिक-मानसिक रुप से सुदृढ़ता प्रदान करता है |
कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय ने की और इसका कुशल संयोजन डाॅ वन्दना द्विवेदी ने किया. संगोष्ठी का प्रारंभ वंदना द्विवेदी द्वारा मंगलाचरण से किया गया तथा इसके पश्चात स्नातक पंचम सत्र की छात्रा प्रतिभा द्विवेदी के द्वारा संस्कृत ध्येय मंत्र एवं सरस्वती गीत प्रस्तुत किया गया.
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