डॉक्टर महरंग बलोच: बलूचिस्तान की आवाज और मानवाधिकारों की मिसाल

डॉक्टर महरंग बलोच: बलूचिस्तान की आवाज और मानवाधिकारों की मिसाल
डॉक्टर महरंग बलोच का जन्म पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हुआ, जो एक ऐसा क्षेत्र है जहां दशकों से अशांति, संघर्ष और मानवाधिकारों का हनन होता आ रहा है। जब वह छोटी थीं, तब उनकी जिंदगी में एक ऐसा सवाल उठा जिसने उनके भविष्य को हमेशा के लिए बदल दिया। उन्होंने अपनी मां से पूछा, "मां, सब बच्चों के अब्बू हैं, हमारे अब्बू कहां हैं?" जवाब में उनकी मां ने उदासी भरे लहजे में कहा, "बेटी, हमें नहीं पता तुम्हारे अब्बू कहां हैं।" जैसे-जैसे वह बड़ी हुईं, उन्हें एक कड़वा सच पता चला कि उनके पिता, अब्दुल गफ्फार लंगोव, जो एक राजनीतिक कार्यकर्ता थे, को 2009 में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने अपहरण कर लिया था। दो साल बाद, 2011 में, उनका क्षत-विक्षत शव मिला। यह सिर्फ उनकी निजी त्रासदी नहीं थी, बल्कि बलूचिस्तान के हजारों परिवारों की साझा कहानी थी।
"हाफ विडो" की त्रासदी
बलूचिस्तान में ऐसी महिलाओं को "हाफ विडो" यानी "आधी विधवा" कहा जाता है, जिनके पति, भाई या बेटे अचानक गायब हो जाते हैं और उनके बारे में कोई खबर नहीं मिलती—न जीवित होने की, न मृत होने की। यह अनिश्चितता इन परिवारों के लिए एक मानसिक और सामाजिक तनाव का कारण बनती है। मानवाधिकार संगठनों, जैसे "वॉयस ऑफ बलोच मिसिंग पर्संस", का दावा है कि बलूचिस्तान में 2000 के दशक से अब तक हजारों लोग "जबरन गायब" किए जा चुके हैं। कुछ रिपोर्ट्स में मिसिंग व्यक्तियों की संख्या 7,000 से अधिक बताई गई है, हालांकि यह आंकड़ा सत्यापित करना मुश्किल है। फिर भी, यह सच है कि बलूचिस्तान में जबरन गायब होने की समस्या व्यापक और गंभीर है। इनमें से कई मामलों में परिवारों को न तो उनके अपनों की लाश मिलती है, न ही कोई जवाब।
महरंग बलोच की मां भी ऐसी ही "हाफ विडो" थीं, और इस दर्द को महरंग ने बहुत करीब से देखा। उनके परिवार में यह त्रासदी सिर्फ पिता तक सीमित नहीं रही। उनके एक भाई को भी 2017 में अपहरण कर लिया गया था, हालांकि वह 2018 में वापस लौट आए। लेकिन यह अनुभव महरंग के लिए एक और सबूत था कि बलूचिस्तान में यह अन्याय कितना गहरा है।
शिक्षा और संघर्ष की शुरुआत
महरंग बलोच ने अपनी पढ़ाई पूरी की और MBBS की डिग्री हासिल की, इसके बाद MD की पढ़ाई भी की। एक डॉक्टर के रूप में वह अपने समुदाय की सेवा कर सकती थीं, लेकिन उनके निजी अनुभवों ने उन्हें एक बड़े मिशन की ओर प्रेरित किया। उनके कबीले पर हमले या बड़े पैमाने पर हिंसा का कोई स्पष्ट ऐतिहासिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह सच है कि बलूचिस्तान में बलोच समुदाय लंबे समय से उत्पीड़न का शिकार रहा है। महरंग ने अपने पिता और भाई के साथ हुए अन्याय को अपने जीवन का आधार बनाया और बलूचिस्तान के मिसिंग व्यक्तियों के लिए न्याय की लड़ाई शुरू की।
बलोच यकजहती कमेटी और ऐतिहासिक मार्च
2019 में, महरंग बलोच ने बलोच यकजहती कमेटी (BYC) की स्थापना की। यह संगठन बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन, खासकर जबरन गायब किए गए लोगों के मुद्दे को उठाता है। BYC ने पूरे पाकिस्तान में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन और जागरूकता अभियान चलाए। महरंग ने कभी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाया; उन्होंने अहिंसा के जरिए अपनी बात दुनिया तक पहुंचाई। उनके नेतृत्व में, BYC ने बलूचिस्तान से इस्लामाबाद तक एक ऐतिहासिक मार्च का आयोजन किया। इस मार्च में हजारों लोग शामिल हुए और यह इतना प्रभावशाली था कि इसने पाकिस्तान सरकार और सेना की नींद उड़ा दी। इसने बलूचिस्तान में हो रहे अत्याचारों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाने में मदद की।
व्यक्तिगत बलिदान और दृढ़ संकल्प
महरंग बलोच ने शादी नहीं की। उन्होंने कहा, "मैं अपनी मां और भाभियों की तरह हाफ विडो नहीं बनना चाहती। या तो पाकिस्तान की सेना मुझे मार दे, या मैं अपने संघर्ष को जारी रखूंगी।" यह बयान उनके साहस और संकल्प को दर्शाता है। वह अपने लोगों के लिए पूरी तरह समर्पित हैं। उनकी एक आवाज पर बलूचिस्तान के लाखों लोग इकट्ठा हो जाते हैं, जो उनके नेतृत्व और प्रभाव को साबित करता है।
पाकिस्तान सरकार का डर और दमन
पाकिस्तान की सरकार और सेना में महरंग बलोच का खौफ साफ दिखता है। जब टाइम मैगजीन ने उन्हें 2024 में "टाइम100 नेक्स्ट" सूची में शामिल किया और न्यूयॉर्क में सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किया, तो कराची एयरपोर्ट पर उन्हें विमान में चढ़ने से रोक दिया गया। इसी तरह, जब उन्हें स्वीडन और नार्वे में एक सेमिनार के लिए बुलाया गया, तो भी उन्हें एयरपोर्ट से वापस भेज दिया गया। ये घटनाएं बताती हैं कि उनकी आवाज को दबाने की कितनी कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन वह रुकने वाली नहीं हैं।
वैश्विक पहचान और प्रेरणा
आज, डॉक्टर महरंग बलोच पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के लिए संघर्ष की एक जीती-जागती मिसाल हैं। 2025 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, जिसे उन्होंने बलूचिस्तान के मिसिंग व्यक्तियों और उनके परिवारों के लिए एक सम्मान बताया। उन्होंने अपने जीवन को बलूचिस्तान के लोगों के अधिकारों के लिए समर्पित कर दिया है। उनका साहस, दृढ़ता और शांतिपूर्ण संघर्ष न केवल बलोच समुदाय, बल्कि भारत और दुनिया भर के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
भारतीय दर्शकों के लिए संदेश
भारत में हम अक्सर अपने पड़ोसी देशों की सच्चाई से अनजान रहते हैं। बलूचिस्तान में हो रहा यह अन्याय हमें सोचने पर मजबूर करता है कि मानवाधिकारों की रक्षा कितनी जरूरी है। डॉक्टर महरंग बलोच की कहानी हमें सिखाती है कि एक व्यक्ति भी अपने हौसले और सच्चाई के दम पर बड़े बदलाव की शुरुआत कर सकता है। उनका यह संघर्ष हमें याद दिलाता है कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना कितना महत्वपूर्ण है, चाहे वह कहीं भी हो।

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