G20 समिट में शामिल, वर्ल्ड लीडर्स के लिए, राष्ट्रपति भवन में 9 सितंबर को डिनर का आयोजन किया गया, जिसके लिए भेजे गए आमंत्रण पत्र में, परंपरा से हटके, ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह, ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा है. इसी बीच देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इंडोनेशिया दौरे का एक पत्र सामने आया जिसमे साफ़ साफ़ 'द प्राइम मिनिस्टर ऑफ भारत' लिखा हुआ है. G20 इवेंट के निमंत्रण पत्र के साथ-साथ आइडेंटिटी कार्ड्स पर भी Indian official की जगह Bharat Official यानी भारत के अधिकारी लिखा हुआ है। मतलब साफ़ है कि सरकार अब अंग्रेजों के दिए हुए नाम को हटा कर अपनी वास्तविक पहचान को ही आधिकारिक पहचान बनाने में जुट गयी है. इससे कुछ लोगों को दिक्कत होने लगी है. लेकिन ज्यादातर लोगों ने सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए इसका समर्थन किया है.
देश में इंडिया नाम का विरोध समय पर होता रहा है क्योंकि हम इंडिया
कभी थे ही नहीं, हम तो भारत थे जिसे मुग़लों ने पहले हिन्दुस्तान का चोला पहनाया गया फिर
अंग्रेजों ने इसे अपनी मर्जी से इंडिया कर दिया.
इतिहासकारों के अनुसार भारत का पहला, प्राचीन नाम ब्रह्मावर्त था. इसके बाद इसका नाम
आर्यावर्त पड़ा. आर्यावर्त शब्द उत्तरी भारत भारत के लिए प्रयोग होता था और दक्षिण
भारत को दक्षिणावर्त के नाम से जाना जाता था. उसके बाद दुष्यंत और शकुन्तला के
पुत्र भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा.
महाभारत के अनुसार भी, भारत का नाम हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत और शकुंतला
के पुत्र, प्रतापी सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत
पड़ा था.
पौराणिक काल से ही इस देश को भारत कहा जाता था. जब देश आजाद हुआ, तो होना तो यह चाहिए था कि देश का
आधिकारिक नाम फिर से भारत कर दिया जाता और अंग्रेजों का दिया नाम “इंडिया” जो गुलामी और पराधीनता का प्रतीक था उसे नाम
हमेशा हमेशा के लिए मिटा दिया जाता.
इंडिया नाम रख कर भारत को उसकी समृद्धशाली संस्कृति और सभ्यता से
काटने की कोशिश अंग्रेजों ने की थी. अब जब इंडिया की जगह आधिकारिक नाम भारत प्रयोग
हो रहा है तो उन लोगों को तकलीफ भी हो रही है जो इस देश से सनातन धर्म की जडें काट
देना चाहते हैं.
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