उत्तर भारत में रहने वालों के लिए दशेहरी आम नहीं बल्कि बहुत ही ख़ास है और उतनी ही ख़ास है इसकी दास्ताँ. आइये आज आपको एक बड़ी ही दिलचस्प कहानी सुनाते हैं, ये कहानी है अपनी मिठास और ख़ास स्वाद के लिए दुनियाभर में मशहूर दशेहरी आम की.
बात लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी है, लखनऊ में काकोरी के पास एक गाँव हुआ करता था जिसका नाम था दशेहरी. माल और मलीहाबाद से लखनऊ आने जाने का रास्ता दशेहरी गाँव से होकर गुजरता था. आम के मौसम में व्यापारी इसी रास्ते से होकर अपना आम लखनऊ की मंडी में लेकर जाते थे.
दशेहरी गाँव में नवाब साहब के खेत में एक झोपडी हुआ करती थी जिसमे एक फ़कीर रहता था. फ़कीर ने अपनी झोपडी के बाहर एक प्यायु लगाया था जिसमे भीषण गर्मी में प्यासे मुसाफिर अपनी प्यास बुझाते, कुछ देर आराम करते और फिर आगे बढ़ते.
एक दिन फ़क़ीर की झोपडी से आम का एक बड़ा व्यापारी गुजरा. वो व्यापारी बहुत घमंडी था. उसे लग रहा था कि वो एक बड़ा व्यापारी है तो फ़कीर उसकी कुछ ख़ास खातिरदारी करेंगे. मगर फ़कीर के रूखे व्यवहार से वो व्यापारी चिढ गया. उसने अपने झोले से एक आम निकाला और फ़कीर को दिखाते हुए बोला “तुमने कभी ऐसा लाजवाब आम नहीं देखा होगा. मैं ये आम जमीं में पटक के ख़राब कर दूंगा लेकिन तुम्हे नहीं दूंगा” ये कह के व्यापारी ने वो आम जमीं में पटक कर कुचल दिया.
फ़कीर ने उस जगह को मिटटी से ढक कर वहाँ पानी दाल दिया. कुछ दिन बाद वहाँ एक आम का पेड़ निकला. जब वो पेड़ बड़ा हुआ तो उसके फल इलाके में पाए जाने वाली आम की सभी प्रजातियों से स्वाद और बनावट में अलग थे. चूँकि ये प्रजाति दशेहरी गाँव में जन्मी थी तो इसे दशेहरी नाम दे दिया गया. दशेहरी आम की बढती शोहरत से लखनऊ के बागवान इस प्रजाति की ओर आकर्षित हुए. उन्होंने मलीहाबाद और माल के बागों में इसकी कलम काट कर लगाना शुरू की. धीरे धीरे दशेहरी की डिमांड इतनी बढ़ी की मलीहाबाद से अन्य प्रजातियों का सफाया हो गया और हर तरफ दशेहरी नज़र आने लगी.
आज डेढ़ सौ साल से ज्यादा हो गए हैं मगर दशेहरी गाँव में नवाब साहब की ज़मीन पर फ़कीर का लगाया वो पेड़ आज भी जीवित है और आज एक संरक्षित धरोहर के रूप में मौजूद है.
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