पाकिस्तान में रहने वाली रहस्यमयी जनजाति | Mystery and Truth of Kalash Valley Girls in Pakistan

पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम में ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत के चित्राल जिले में हिन्दुकुश पर्वत से घिरी एक घाटी है जिसे कलाश घाटी कहते हैं. रहस्य और रोमांच से भरी इस घाटी में एक खास समुदाय रहता है जो देखने में आम पाकिस्तानियों से एकदम अलग है. ये गैर मुस्लिम समुदाय है जो यहाँ हजारों साल से रहता आ रहा है.

कट्टरवादियों के द्वारा काफी समय तक कलाश के लोगों को मुसलमान बनाने की कोशिश की गयी मगर मुश्किल हालातों के बाद भी ये समुदाय अपना धार्मिक अस्तित्व बचाने में सफल रहा.

बेहद खूबसूरत दिखने वाले कलाश के ये लोग संगीत और उत्सव प्रेमी होते हैं. इनके तीन उत्सव चिलम जोशी, चोइमस और उच्छल आज विश्व भर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. कलश लोगों की संस्कृति अपने इर्द-गिर्द के लोगों से बिलकुल भिन्न है। यह कई देवी-देवताओं में विश्वास रखते हैं। 

सिकंदर से रिश्ता 

कलश समुदाय के लोगों का सफेद रंग और नीली आँखें देख कर, भारत में अंग्रेज़ी राज के ज़माने में इतिहासकारों का कहना था कि यह सिकंदर की फ़ौज में शामिल यूनानियों के वंशज हैं जो ३२६ ईसा पूर्व फ़ौज के साथ भारत आये थे और यहीं बस गए. इस बात को इन्टरनेट पर भी जोर शोर से प्रसारित किया गया कि Alexendar The Great यानी सिकंदर महान के वंशज पाकिस्तान के चित्राल प्रांत में रहते हैं.  

लेकिन आधुनिक युग में DNA तकनीक ने साफ कर दिया कि कलश समुदाय के लोगों का सिकंदर की फ़ौज या यूनानियों से कोई लेना देना नहीं है.  

असली सच जो छुपाया गया 

भारत के उत्तर में हिमालय से लेकर हिन्दुकुश पर्वत तक अनेक आदिवासी समुदाय रहते थे. ये आदिवासी लोग हिन्दू धर्म के अति प्राचीन स्वरुप के अनुयायी थे और प्रकृति पूजा करते थे.

भारत पर मुस्लिम शासन के दौरान ऐसे अधिकाँश कबीले वालों को या तो मार दिया गया या उनका धर्म परिवर्तन हो गया. हिन्दुकुश के पर्वतों पर एक समुदाय किसी तरह अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष कर रहा था. मुस्लिम समाज के लोग इन्हें काफिर कह कर बुलाते थे और हिन्दुकुश पर्वत पर जहाँ ये रहते थे उस जगह को काफिरिस्तान कहा जाता था. साल 1876 में afganistan भारत से अलग हुआ तो काफिरिस्तान का ज्यादातर भाग अफगानिस्तान में चला गया. साल १८९५ से १८९६ के दौरान अफगानिस्तान के अमीर अब्दुर्रहमान खान ने काफिरिस्तान पर बहुत जुल्म ढाए और यहाँ रहने वाले सभी हिन्दुओं का धर्म परिवर्तित करके वहाँ नूरिस्तान प्रांत बनाया. भारत अफगानिस्तान बंटवारे के बाद कलाश घाटी भारत के हिस्से में आई और यहाँ रहने वाले कलाश लोगों को ब्रिटिश हुकूमत का प्रोटेक्शन मिला. इस प्रोटेक्शन की एक वजह ये भी थी कि अंग्रेज इन्हें Alexendar का वंशज मानते थे.

भारत पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कलाश घाटी पाकिस्तान का हिस्सा बनी और एक बार फिर इस समुदाय पर धर्म परिवर्तन का खतरा मंडराने लगा. इस दौरान बहुत से कलाशी लोग जबरन मुसलमान बनाये गए. लेकिन एक बार फिर Alexendar के वंशज वाली थ्योरी काम आई और अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनने के बाद पाकिस्तान सरकार को मजबूरन कलाश समुदाय को प्रोटेक्शन देना पड़ा.

आज की स्थिति

आज कलाश के लोग स्थानीय मुस्लिम लोगों के साथ घुल मिल कर रहते हैं. उनकी इस रंगबिरंगी संस्कृति और सभ्यता को देखने के लिए दूर दूर से पर्यटक आते हैं.

जैसे अपने देश में किसान फसल के बाद उत्सव मानते हैं वैसे ही कलाश के लोग फसल कटाई के बाद अनाज और प्रकृति की पूजा के लिए साल में तीन बार उत्सव मानते हैं. यहाँ सर्दियों में होने वाले एक ऐसे ही उत्सव चोइमस में विवाह योग्य लड़कियां अपने लिए वर पसंद करती हैं. इस उत्सव को देखने के लिए बड़ी तादात में पर्यटक यहाँ आते हैं. पर्यटकों से होने वाली आमदनी से, आज कलाश में भी विकास हो रहा है, लेकिन विकास की इस चकाचौंध में, इन कलाश वासियों की मूल संस्कृति भी बची रहे, इस ओर ध्यान देना भी ज़रूरी है.  

 विडियो में देखिये पूरा सच :-


 

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