रक्षाबंधन और सनातन आस्था की कहानियाँ

हिन्दू पंचांग के अनुसार हर वर्ष सावन मास की पूर्णिमा तिथि पर राखी का त्योहार मनाया जाता है।इसे श्रावणी पर्व भी कहते हैं।

रक्षा बंधन दो शब्दों के मिलकर बना है, “रक्षा” और “बंधन“. संस्कृत भाषा मे इस पर्व का अर्थ होता है - “एक ऐसा बंधन जो रक्षा प्रदान करता हो”। “रक्षा” का मतलब रक्षा प्रदान करना है और “बंधन” का अर्थ एक गांठ। एक डोर जो रक्षा प्रदान करे। इस दिन बहनें भाई को राखी बांधकर उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं और भाई अपनी बहनों की प्रतिष्ठा की रक्षा का वचन देता है। इस त्योहार से कुछ कथाएं भी जुड़ी हैं। आइए जाने कैसे हुई रक्षाबंधन की शुरुआत ...

■ माता लक्ष्मी और राजा बलि की कहानी               

पौराणिक कथा के अनुसार असुर सम्राट बलि बहुत बड़ा विष्णु भक्त था। बलि की इतनी ज्यादा भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने बलि के राज्य की रक्षा स्वयं करनी शुरू कर दी। ऐसे में माता लक्ष्मी इस बात से परेशान होने लगी. क्यूंकि विष्णु जी अब वैकुंठ पर नहीं रहते थे। पति को वापस लाने के लिए नारद जी ने देवी लक्ष्मी से कहा कि आप राजा बलि को राखी बांधकर भाई बना लीजिए और वरदान के रूप में भगवान विष्णु को मांग लीजिए। देवी लक्ष्मी ने भेष बदलकर राजा बलि को राखी बांधी और विष्णु जी को मांग लिया। उस दिन सावन पूर्णिमा थी। ऐसा माना जाता है कि तभी से भाई-बहन का पवित्र पर्व रक्षाबंधन मनाया जाने लगा। कहते हैं कि सबसे पहले देवी लक्ष्मी ने ही राखी बांधने की शुरुआत की थी।


■ कृष्ण और द्रौपधी की कहानी

जब श्री कृष्ण अपनी बुआ के पुत्र शिशुपाल के 100 अपराध पूरे होने के पश्चात शिशुपाल को मारने के लिए के उसके साथ युद्ध कर रहे थे तभी श्री कृष्ण की तर्जनी उंगली कट जाने पर द्रौपदी ने अपनी साड़ी के पल्लू का टुकड़ा फाड़कर भगवान कृष्ण के हाथ पर बांध दिया था। तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी को उनकी रक्षा का वचन दिया। श्री कृष्ण ने अपने इसी वचन के तहत राजा धृतराष्ट्र के दरबार में द्रौपदी के चीरहरण के वक़्त उनके सम्मान की रक्षा की थी। मान्यता है कि तब से यह त्योहार मनाया जा रहा है।


■ संतोषी माँ की कहानी

भगवान गणेश के दोनों पुत्र सुभ और लाभ अपनी कोई बहन ना  को लेकर परेशान थे। उन्होंने अपने पिता को एक बहन लाने के लिए जिद की। बाध्य होकर भगवान् गणेश को अपनी शक्ति का उपयोग कर, संतोषी माता को उत्पन्न करना पड़ा। जिस दिन गणेश पुत्रो को बहन संतोषी माता की प्राप्ति हुई वो दिन भी राखी का ही था। 


■ यम और यमुना की कहानी

एक लोककथा के अनुसार मृत्यु के देवता यम बारह वर्षों तक अपनी बहन यमुना से नही मिले। इसपर यमुना को काफी दुःख पहुंचा। गंगा माता के परामर्श पर यम जी ने अपनी बहन के पास जाने का निश्चय किया। अपने भाई के आने से यमुना की खुशी और धयान रखने से प्रसन्न यम ने यमुना से वरदान मागने को कहा। तुम्हे क्या चाहिए। जिस पर यमुना ने भाई से बार बार मिलने की इच्छा जताई। यम ने बहन की इच्छा को पूर्ण कर दिया। यमुना हमेशा के लिए अमर हो गयी।


■ सम्राट सिकंदर और सम्राट पुरु

राखी त्यौहार की एक कहानी सन 300 BC की भी है जब अलेक्जेंडर भारत जीतने के लिए अपनी पूरी सेना के साथ यहाँ आया था। उस वक्त भारत में सम्राट पुरु का काफी बोलबाला था। 

जब अलेक्जेंडर की पत्नी को रक्षा बंधन के बारे में पता चला तब उन्होंने सम्राट पुरु के लिए एक राखी भेजी थी जिससे की वो अलेक्जेंडर को जान से न मार दें. वहीं पुरु ने भी अपनी बहन का कहना माना और अलेक्जेंडर पर हमला नहीं किया।


■ रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ

रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूँ की कहानी का एक अलग महत्व है।  चितोर की रानी कर्णावती एक विधवा रानी थी। जब गुजरात के सुल्तान बहादुर साह ने उनके राज्य पर हमला कर दिया। रानी अपने राज्य को बचाने में असमर्थ होने लगी। तभी उन्होंने एक राखी सम्राट हुमायूँ को भेजकर अपनी रक्षा करने के लिए बोला। हुमायूँ ने भी अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी एक सेना की टुकड़ी को चित्तोर भेज दिया। जिससे बहादुर साह के सेना को पीछे हटना पड़ा था।

Post a Comment

और नया पुराने