पाश्चात्य संस्कृति और सिनेमा का एक प्रभाव भारतीय समाज पर ये भी पड़ा, कि भारत में भी लिव इन रिलेशनशिप के मामले, बढ़ने लगे. समाज में शुरू से, लिव इन रिलेशनशिप का विरोध हुआ है, और इसे संस्कृति और सभ्यता के लिए, एक बड़ा ख़तरा बताया जाता रहा है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 में, एक फ़ैसला देते हुए कहा था कि, "वयस्क होने के बाद व्यक्ति, किसी के साथ रहने या शादी करने के लिए आज़ाद है."
इस फ़ैसले के साथ, लिव-इन रिलेशनशिप को, क़ानूनी मान्यता मिल गई. अदालत के अनुसार, कुछ लोगों की नज़र में 'अनैतिक' माने जाने के बावजूद, ऐसे रिश्ते में रहना, कोई 'अपराध नहीं है'.
लेकिन व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर मिली ये आज़ादी, धीरे धीरे अभिशाप बनती जा रही है, क्योंकि अधिकांश मामलों में शुरू में परस्पर आकर्षण, और आपसी सहमति से बनने वाले ये अंतरंग सम्बन्ध, बाद में सतत झगड़े और यौन शोषण में तब्दील हो जाते हैं।
ज्यादातर मामलों में यह देखने में आया है कि पुरुष, महिलाओं को कुछ समय बाद शादी करने का झांसा देकर, ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने के तैयार कर लेते हैं। एक बार यह हो जाने पर, शादी करने से पल्ला झाड़ लेते हैं। ऐसे में उनकी महिला लिव इन पार्टनर, कहीं की नहीं रहती। बावजूद इसके, लड़कियां लिव इन पार्टनर बनने के लिए, इतनी आसानी से तैयार क्यों हो जाती हैं, इस सवाल का जवाब, कठिन है।
इसका कारण, शहरों में उन्मुक्त जीवन जीने की चाह, सही उम्र में विवाह न हो पाना, आर्थिक संकट, पसंदीदा वर न मिल पाना या, परिवार से बगावत भी हो सकता है। कई मामलों में तो, यह भी देखने में आता है कि, पुरुष पार्टनर पहले से शादीशुदा होता है, और केवल यौनेच्छा पूर्ति के लिए, किसी महिला को लिव इन पार्टनर बना लेता है।
आज लिव इन रिलेशनशिप, एक ऐसी समस्या बन चूका है, जिसके खात्मे के लिए समाज को, स्वयं से आगे आना होगा और इन रिश्तों के दुष्परिणामों के बारे में, लोगों को जागरूक करना होगा.
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