१८९१ में जब मणिपुर पर अंग्रेजों का कब्ज़ा हुआ तो उनकी नज़र भोली भाली कुकी और नागा जनजातियों पर पड़ी. ये जनजातियाँ काफी पिछड़ी हुई थी मगर जिन पहाड़ों पर ये रहती थी वो प्राकृतिक सम्पदा का अकूत भण्डार थे. मणिपुर के इन पहाड़ों की जलवायु अफीम की खेती के लिए भी काफी उपयुक्त थी. फिर क्या था, अंग्रेजों में अपनी मिशनरीज को लगा दिया काम पे. ये मिशनरीज विकास के नाम पर पहाड़ी जनजातियों से मेल जोल बढाती और उन्हें इसाई बना देती।
अंग्रेजों के 2
मकसद थे। पहला- मणिपुर को एक इसाई राज्य बनाना, दूसरा- अफीम के कारोबार में राज्य
को झोंक कर पैसे कमाना। विकास और सुविधाओं के नाम पर तेज़ी से भोली भाली जनता का
धर्मान्तरण शुरू हो गया। मगर ये धर्मान्तरण ज्यादातर कूकी और नागा जनजातियों तक ही
सीमित था जो पहाड़ों पर रहते थे। राज्य के मैदानी भाग में रहने वाले बहुसंख्यक
मैतेई समुदाय के लोग हिन्दू धर्म को मानने वाले थे।
आजादी के 2 साल
बाद 15 अक्टूबर 1949 को मणिपुर का भारत में विलय हुआ और 1956 में मणिपुर को केंद्र
शासित प्रदेश का दर्जा मिला. आज़ादी के बाद भी मणिपुर में धर्मान्तरण का खेल चल रहा
था। साल 1960 में नेहरु
जी एक एक्ट पास कर देते हैं जिसे "मणिपुर भूमि राजस्व और भूमि सुधार अधिनियम,
1960" के नाम से जाना जाता है। मणिपुर में इस
एक्ट के तहत पहाड़ी क्षेत्रों की जमीन सिर्फ कूकी या नागा जैसी अनुसूचित जातियां ही
खरीद सकती हैं. मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ों पर ज़मीन नहीं खरीद सकते मगर कूकी और
नागा मैदानी क्षेत्रों में ज़मीन खरीद सकते हैं. मणिपुर 90 प्रतिशत पहाड़ों से घिरा
हुआ है और वहाँ सिर्फ १० प्रतिशत मैदानी भाग है. इस एक्ट का ये असर हुआ कि मैतेई हिन्दू
तो सिर्फ 10 प्रतिशत भूभाग तक सीमित हो गए और पहाड़ों पर इसाई मिशनरीज अपना धंधा
चलाती रहीं. इसी बीच राज्य में अफीम का कारोबार भी फलता फूलता रहा जिसे कूकी
समुदाय के लोग गैरक़ानूनी रूप से करते आ रहे हैं. 1972 में मणिपुर को पूर्ण राज्य
का दर्ज़ा मिल गया.
आज मणिपुर के
लगभग सभी कूकी और नागा इसाई बन चुके हैं और राज्य में ईसाईयों की जनसँख्या 40 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है. मणिपुर में बड़ी संख्या में अफीम की खेती होती है जिसपर
कूकी समुदाय का कब्ज़ा है। 2017 में जब बीरेन
सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अफीम के इस अवैध कारोबार को नष्ट करने का अभियान
चलाया. अफीम का कारोबार नष्ट होने से एक और जहाँ कूकी समुदाय की आर्थिक मंदी शुरू
हो गयी वहीँ दूसरी ओर अफीम के अंतर्राष्ट्रीय तस्कर परेशान हो गए. कहते हैं पिछले कुछ
दिनों में मणिपुर में 8 लाख किलो अफीम नष्ट की जा चुकी है, इस अफीम से हेरोइन
बनाने के बाद इसकी कीमत लगभग 35 हज़ार करोड़ रूपए होती. ये कूकी समुदाय के लिए एक
बहुत बड़ी आर्थिक चोट थी.
दूसरी चोट कूकी
समुदाय को तब लगी जब हाई कोर्ट ने मैती समुदाय को भी अनुसूचित जाति का दर्ज़ा देते
हुए उन्हें पहाड़ों पर ज़मीन खरीदने की अनुमति दे दी. इस फैसले से कूकी समुदाय चिढ
गया क्योंकि वो इन पहाड़ों पर अफीम की अवैध खेती करता था. इसके बाद राज्य भर में
विरोध प्रदर्शन शुरू हुए जिसमे भाजपा सरकार से चिढ़े कूकी समुदाय के लोग हिन्दुओं
को निशाना बनाने लगे. इसी बीच दूसरे के घर की आग में अपनी रोटी सेंकने वाली कुछ
राजनैतिक पार्टियों ने साजिशन मणिपुर का एक विवादित विडियो जोर शोर से शेयर किया.
विडियो शेयर करने के पीछे एक साजिश और रणनीति थी. उस विडियो को संसद के मानसून
सत्र के ठीक पहले सुनियोजित ढंग से शेयर और वायरल करना इस आशंका को बल देता है कि
सरकार और देश की छवि को धूमिल करने के लिए इसमें कहीं न कहीं देश विरोधी ताकतों का
पूरा हाथ है. आज मैतेई और कूकी आमने सामने हैं और मणिपुर जल रहा है मगर एक सच ये
भी है कि मणिपुर की आग में राजनैतिक रोटियाँ सेंकने वाले हिंदुत्व को बदनाम करने
में ज़रा भी पीछे नहीं हैं.
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