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एआई का छाया: आने वाली पीढ़ी की बुद्धि कैसे हो रही है कुंद

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एआई का छाया एआई का छाया: बुद्धि कैसे हो रही है कुंद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने हमारे जीवन को आसान बना दिया है, लेकिन इसके साथ ही एक गंभीर चिंता उभर रही है – क्या एआई आने वाली पीढ़ी की बुद्धि को कुंद कर रहा है? बच्चे और युवा आज चैटजीपीटी जैसे टूल्स पर इतना निर्भर हो रहे हैं कि उनकी स्वतंत्र सोच, समस्या-समाधान क्षमता और रचनात्मकता कमजोर पड़ रही है। विभिन्न शोध पत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि एआई पर अत्यधिक निर्भरता से संज्ञानात्मक क्षमताओं का ह्रास हो रहा है। इस लेख में हम कुछ प्रमुख शोध पत्रों के उदाहरणों से इस मुद्दे को समझेंगे, जहां एआई के नकारात्मक प्रभावों को वैज्ञानिक रूप से विश्लेषित किया गया है। एआई पर अत्यधिक निर्भरता और संज्ञानात्मक क्षमताओं का ह्रास एक प्रमुख शोध में पाया गया कि एआई डायलॉग सिस्टम्स (जैसे चैटबॉट्स) पर अधिक निर्भरता छात्रों की निर्णय लेने की क्षमता, आलोचनात्मक सोच और वि...

'आई लव मुहम्मद' विवाद: बरेली में उपद्रव, मौलाना की गिरफ्तारी और योगी सरकार का एक्शन मोड

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'आई लव मुहम्मद' विवाद बरेली/लखनऊ, 27 सितंबर 2025: उत्तर प्रदेश में 'आई लव मुहम्मद' अभियान को लेकर उपजे विवाद ने बरेली शहर को अशांति की चपेट में ले लिया है। यह पूरा प्रकरण ईद-ए-मिलाद-उन-नबी (बरावफात) जुलूस के दौरान शुरू हुआ, जो अब राज्य के कई हिस्सों में फैल चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसे 'पूर्व नियोजित साजिश' करार देते हुए सख्त कार्रवाई की है, जबकि विपक्ष ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। इस लेख में हम पूरे घटनाक्रम को क्रमबद्ध तरीके से समझेंगे, जिसमें मौलाना तौकीर रजा की भूमिका, पुलिस की कार्रवाई, गिरफ्तारियां और उसके बाद की स्थिति शामिल है। विवाद की शुरुआत: कानपुर से बरेली तक का सफर यह पूरा प्रकरण 4 सितंबर 2025 को कानपुर में बरावफात जुलूस से शुरू हुआ। जुलूस के दौरान कुछ लोगों ने 'आई लव मुहम्मद' लिखे बोर्ड और तंबू सड़क पर लगाए, जो रामनवमी जुलूस के रास्ते के करीब सैयद नगर, रावतपुर इलाके में थे। हिंदू संगठनों ने इसे 'नई परंपरा' और जानबूझकर उकसावा बताया। 9 सितंबर को कानपुर पुलिस ने 24 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज क...

नवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व: एक प्राचीन पर्व का आधुनिक विज्ञान से मेल

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नवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व: एक प्राचीन पर्व का आधुनिक विज्ञान से मेल नवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व नवरात्रि, नौ रातों तक चलने वाला एक जीवंत हिंदू त्योहार है, जो देवी दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा के लिए समर्पित है। चैत्र (वसंत) और शारदीय (शरद) में साल में दो बार मनाया जाने वाला यह पर्व, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। हालांकि यह आध्यात्मिकता में गहराई से निहित है, नवरात्रि का एक गहरा वैज्ञानिक महत्व भी है, जो मानव प्रथाओं को प्राकृतिक चक्रों, स्वास्थ्य लाभों और मनोवैज्ञानिक कल्याण के साथ जोड़ता है। यह लेख बताता है कि कैसे नवरात्रि की प्राचीन परंपराएं, मौसमी बदलावों से लेकर कोशिकाओं के कायाकल्प तक, आधुनिक विज्ञान से मेल खाती हैं। ऋतु संधियों और खगोलीय चक्रों का वैज्ञानिक आधार नवरात्रि का समय सिर्फ़ धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा काल में साल में चार संधियां (परिवर्तन काल) आती हैं, जिनमे...

महर्षि सुश्रुत: प्राचीन भारतीय शल्य चिकित्सा के जनक और उनके योगदान | Sushruta: Father of Indian Surgery

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महर्षि सुश्रुत: शल्य चिकित्सा के शिल्पकार जब महर्षि सुश्रुत का नाम लिया जाता है, तो यह केवल किसी किंवदंती का नाम नहीं होता, बल्कि इसके साथ सम्मान और श्रद्धा का भाव भी जुड़ा होता है। वे केवल एक चिकित्सक नहीं थे, बल्कि एक शिक्षक, एक सजग पर्यवेक्षक और मानव शरीर के अनुभवों को धैर्यपूर्वक दर्ज करने वाले एक वैज्ञानिक भी थे। उनका महान ग्रंथ सुश्रुत संहिता , एक ऐसे असाधारण मस्तिष्क का प्रमाण है, जिसने शरीर को जिज्ञासा, पद्धति और एक कुशल कारीगर के अनुशासन के साथ समझा। काल और योगदान यद्यपि सुश्रुत के जीवनकाल को लेकर विद्वानों में अभी भी बहस जारी है, लेकिन उनकी रचनाओं का योगदान निर्विवाद है। सुश्रुत संहिता एक शल्य चिकित्सक के संसार, उसके उपकरणों, उसकी पद्धतियों और उसके सिद्धांतों को बड़ी ही स्पष्टता से दर्शाती है। इस ग्रंथ के पन्नों से पता चलता है कि यह केवल अटकलों पर आधारित नहीं, बल्कि यह एक व्यवस्थित और प्रमाणित परंपरा का परिणाम है। एक ग्रंथ नहीं, एक चलता-फिरता चिकित्सालय सुश्रुत संहिता केवल एक चिकित्सा नियमावली नहीं है, बल्कि यह गद्य में लिखा एक चलता-फिरता चिकित्सालय है। इसमें शल्य...