श्रुत: प्राचीन भारतीय शल्य चिकित्सा के जनक और उनके योगदान | Sushruta: Father of Indian Surgery
महर्षि सुश्रुत: शल्य चिकित्सा के शिल्पकार
काल और योगदान
यद्यपि सुश्रुत के जीवनकाल को लेकर विद्वानों में अभी भी बहस जारी है, लेकिन उनकी रचनाओं का योगदान निर्विवाद है। सुश्रुत संहिता एक शल्य चिकित्सक के संसार, उसके उपकरणों, उसकी पद्धतियों और उसके सिद्धांतों को बड़ी ही स्पष्टता से दर्शाती है। इस ग्रंथ के पन्नों से पता चलता है कि यह केवल अटकलों पर आधारित नहीं, बल्कि यह एक व्यवस्थित और प्रमाणित परंपरा का परिणाम है।
एक ग्रंथ नहीं, एक चलता-फिरता चिकित्सालय
सुश्रुत संहिता केवल एक चिकित्सा नियमावली नहीं है, बल्कि यह गद्य में लिखा एक चलता-फिरता चिकित्सालय है। इसमें शल्य चिकित्सा के संपूर्ण चक्र को समझाया गया है, जिसमें निदान (diagnosis), शल्यक्रिया की प्रक्रिया, और शल्यक्रिया के बाद की देखभाल शामिल है। इस ग्रंथ में विभिन्न प्रकार के उपकरणों का विस्तृत विवरण मिलता है, जैसे - चाकू, सुई, चिमटी आदि। यह वर्णन एक संगठित और अच्छी तरह से सुसज्जित शल्य चिकित्सा व्यवस्था की ओर संकेत करता है, जो किसी भी कुशल कारीगर के नियमों जितनी ही सटीक और अनुशासित थी।
"कर के सीखो" की आधुनिक शिक्षा प्रणाली
तकनीक और नवाचार का अद्भुत संगम
सुश्रुत संहिता में कई प्रक्रियाओं और सिद्धांतों का वर्णन है, जो अपने विवरण की सटीकता से चकित करते हैं:
- शारीरिक ज्ञान: सुश्रुत ने हड्डियों, जोड़ों और धमनियों का ऐसा विस्तृत वर्गीकरण किया जो फ्रैक्चर और अव्यवस्था (dislocation) जैसे विकारों के उपचार के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शक बन गया।
- राइनोप्लास्टी (Rhinoplasty): उनका सबसे प्रसिद्ध योगदान नाक के पुनर्निर्माण की विधि है। बाद के इतिहासकारों ने इसे “भारतीय पद्धति” कहा। माथे या गाल से त्वचा लेकर नाक को फिर से बनाने की यह तकनीक न केवल उनकी तकनीकी कुशलता को दर्शाती है, बल्कि उनकी सौंदर्य संबंधी समझ को भी उजागर करती है।
- शल्य चिकित्सा के लिए तैयारी: यह ग्रंथ शल्य चिकित्सा से पहले की तैयारी, दर्द कम करने और स्वच्छता बनाए रखने का भी निर्देश देता है, जो शल्य चिकित्सा की सफलता के लिए जरूरी है।
- घाव की देखभाल: घाव को सिलने, साफ करने और संक्रमण को रोकने के विस्तृत निर्देश, केवल चीरफाड़ के कार्य से परे, रोगी के ठीक होने की व्यावहारिक चिंता को दर्शाते हैं।
एक शाश्वत विरासत
सुश्रुत की सबसे बड़ी उपलब्धि किसी एक शल्य चिकित्सा तकनीक की नवीनता नहीं, बल्कि कार्य के प्रति उनका समर्पण है। वे इस बात पर जोर देते थे कि चिकित्सा पद्धति व्यवस्थित, सिखाई जा सकने वाली और अवलोकन पर आधारित होनी चाहिए। सदियों तक उनकी विधियाँ जीवित परंपरा के रूप में विकसित होती रहीं। आज, जब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में ऐसी मशीनें आ चुकी हैं जिनकी कल्पना भी प्राचीन चिकित्सक नहीं कर सकते थे, तब भी सुश्रुत के परिशुद्ध तकनीक, गुरु-शिष्य परंपरा और मानव सेवा के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं।एक शांत संदेश
यदि सुश्रुत के जीवन और लेखन से कोई एक सीख मिलती है, तो वह यह है कि ज्ञान को तभी सच्चा माना जाता है जब वह व्यवहार में लाया जाए। जब सिद्धांत, अभ्यास के साथ जुड़ता है और नैतिक उद्देश्य से निर्देशित होता है, तो वह मानव सेवा का एक शक्तिशाली साधन बन जाता है। सुश्रुत संहिता हमें याद दिलाती है कि विज्ञान अपने सर्वोत्तम रूप में एक शिल्प है—कौशल और विवेक का एक ऐसा संगम जो मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
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