एआई का छाया: आने वाली पीढ़ी की बुद्धि कैसे हो रही है कुंद
एआई का छाया: बुद्धि कैसे हो रही है कुंद
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने हमारे जीवन को आसान बना दिया है, लेकिन इसके साथ ही एक गंभीर चिंता उभर रही है – क्या एआई आने वाली पीढ़ी की बुद्धि को कुंद कर रहा है? बच्चे और युवा आज चैटजीपीटी जैसे टूल्स पर इतना निर्भर हो रहे हैं कि उनकी स्वतंत्र सोच, समस्या-समाधान क्षमता और रचनात्मकता कमजोर पड़ रही है।
विभिन्न शोध पत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि एआई पर अत्यधिक निर्भरता से संज्ञानात्मक क्षमताओं का ह्रास हो रहा है। इस लेख में हम कुछ प्रमुख शोध पत्रों के उदाहरणों से इस मुद्दे को समझेंगे, जहां एआई के नकारात्मक प्रभावों को वैज्ञानिक रूप से विश्लेषित किया गया है।
एआई पर अत्यधिक निर्भरता और संज्ञानात्मक क्षमताओं का ह्रास
एक प्रमुख शोध में पाया गया कि एआई डायलॉग सिस्टम्स (जैसे चैटबॉट्स) पर अधिक निर्भरता छात्रों की निर्णय लेने की क्षमता, आलोचनात्मक सोच और विश्लेषणात्मक विचार को कमजोर करती है। इस अध्ययन में 75% छात्रों ने माना कि एआई पर निर्भरता से उनकी आलोचनात्मक सोच प्रभावित हो रही है, क्योंकि वे एआई-जनरेटेड सामग्री को बिना सोचे-समझे स्वीकार कर लेते हैं। इससे आलस्य बढ़ता है (68.9% मामलों में) और स्वतंत्र समस्या-समाधान की क्षमता घटती है। बच्चे, जो अभी विकासशील अवस्था में हैं, एआई के कारण मूल विचार विकसित करने में कमजोर हो जाते हैं, जिससे उनकी बुद्धि कुंद हो जाती है।
एक अन्य शोध पत्र में 'एआई-चैटबॉट-इंड्यूस्ड कॉग्निटिव एट्रॉफी' (AICICA) की अवधारणा पेश की गई है, जो एआई चैटबॉट्स के कारण आलोचनात्मक सोच, विश्लेषणात्मक क्षमता और रचनात्मकता के क्षरण को दर्शाती है। विशेष रूप से छात्रों और बच्चों में, एआई पर निर्भरता से 'यूज इट ऑर लूज इट' सिद्धांत लागू होता है – अर्थात्, संज्ञानात्मक क्षमताओं का उपयोग न करने से वे कमजोर पड़ जाती हैं। उदाहरण के लिए, एक काल्पनिक परिदृश्य में एक कॉलेज छात्रा हाना ने एआई पर निर्भर होकर अपनी आलोचनात्मक विश्लेषण क्षमता खो दी, जबकि एक किशोर मरियम ने जीवनभर एआई साथी के साथ रहकर निर्णय लेने और रचनात्मकता में कमी महसूस की। यह निर्भरता बच्चों में गहरी हो जाती है, क्योंकि एआई व्यक्तिगत बातचीत से विश्वास पैदा करता है, जिससे स्वतंत्र सोच कम हो जाती है।
संज्ञानात्मक ऑफलोडिंग और आलोचनात्मक सोच पर प्रभाव
एआई टूल्स के उपयोग और आलोचनात्मक सोच के बीच नकारात्मक संबंध को एक मिश्रित पद्धति वाले अध्ययन में सिद्ध किया गया है। यहां 666 प्रतिभागियों पर विश्लेषण से पता चला कि एआई पर निर्भरता और संज्ञानात्मक ऑफलोडिंग (बाहरी टूल्स पर सोच का भार डालना) के बीच सकारात्मक सहसंबंध (r = +0.72) है, लेकिन आलोचनात्मक सोच पर नकारात्मक प्रभाव (-0.68) पड़ता है। युवा प्रतिभागी अधिक प्रभावित होते हैं, क्योंकि वे एआई पर ज्यादा निर्भर होते हैं और उनकी सोचने की क्षमता कम हो जाती है। साक्षात्कारों में प्रतिभागियों ने कहा कि "मैं एआई के बिना कार्य नहीं कर सकता," जो एआई निर्भरता और संज्ञानात्मक जुड़ाव की कमी को दर्शाता है। बच्चों में यह समस्या और गंभीर है, क्योंकि उनकी विकसित हो रही मस्तिष्क एआई के कारण कम सक्रिय रहती है।
निर्णय लेने, आलस्य और सुरक्षा पर एआई का प्रभाव
एक और शोध में एआई के शिक्षा में उपयोग से मानव निर्णय लेने की क्षमता के ह्रास पर जोर दिया गया है। एआई स्वचालित कार्यों से मानव भूमिका कम करता है, जिससे आलस्य बढ़ता है और मस्तिष्क की सोचने की क्षमता सीमित हो जाती है। शिक्षा में, शिक्षक और छात्र कार्य खुद करने की प्रेरणा खो देते हैं, जिससे पेशेवर कौशल कमजोर पड़ते हैं। बच्चों में यह 'यूज इट ऑर लूज इट' से जुड़ा है, जहां एआई पर निर्भरता से संज्ञानात्मक क्षमताएं घटती हैं, और वे कम विचारशील हो जाते हैं।
समस्या-समाधान कौशल और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव
शिक्षा और बाल मानसिक स्वास्थ्य पर एआई के प्रभावों वाले अध्ययन में पाया गया कि एआई पर अत्यधिक निर्भरता से छात्रों की समस्या-समाधान क्षमता घटती है और नकल बढ़ती है। बच्चों में डीपफेक जैसी एआई तकनीकें मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं, लेकिन मुख्य रूप से स्वतंत्र सोच की कमी से बुद्धि कुंद होती है। अभिभावकों और चिकित्सकों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है।
एमआईटी अध्ययन: चैटजीपीटी और मस्तिष्क विकास पर प्रभाव
एमआईटी के एक हालिया अध्ययन ने चैटजीपीटी जैसे एआई के उपयोग से युवाओं में मस्तिष्क जुड़ाव की कमी को उजागर किया है। 54 प्रतिभागियों पर ईईजी विश्लेषण से पता चला कि चैटजीपीटी उपयोगकर्ताओं में मस्तिष्क सक्रियता सबसे कम थी, और वे मूल विचारों की कमी से ग्रस्त थे। महीनों में निर्भरता बढ़ी, और बिना एआई के निबंध लिखने पर स्मृति कमजोर पड़ी। युवा उपयोगकर्ताओं में यह सीखने को नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि विकासशील मस्तिष्क में न्यूरल कनेक्शन कमजोर हो जाते हैं। मनोचिकित्सक डॉ. जिशान खान ने कहा कि इससे स्मृति, लचीलापन और संज्ञानात्मक क्षमताएं प्रभावित होती हैं।
निष्कर्ष
ये शोध पत्र स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि एआई पर अत्यधिक निर्भरता से आने वाली पीढ़ी की बुद्धि कुंद हो रही है – आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और समस्या-समाधान जैसे कौशल कमजोर पड़ रहे हैं। हालांकि एआई उपयोगी है, लेकिन संतुलित उपयोग और शिक्षा में स्वतंत्र सोच को प्रोत्साहन देना आवश्यक है। अभिभावकों, शिक्षकों और नीति-निर्माताओं को इन जोखिमों पर ध्यान देना चाहिए, ताकि एआई एक सहायक बने, न कि बुद्धि का दुश्मन।
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