ब्रह्मांड के रहस्य: जब क्वांटम फिजिक्स ने वेदों से मिलाया हाथ

 

ब्रह्मांड के रहस्य: जब क्वांटम फिजिक्स ने वेदों से मिलाया हाथ

क्या विज्ञान और अध्यात्म दो अलग-अलग रास्ते हैं, या एक ही मंजिल तक पहुँचने के दो अलग-अलग माध्यम? आइए, जानते हैं कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर आधुनिक विज्ञान और हमारे प्राचीन धर्मग्रंथ क्या कहते हैं और उनके बीच का अद्भुत संगम कहाँ है।

अंतरिक्ष में चमकती हुई सर्पिल आकाशगंगा (Milky Way), जिसमें अरबों तारे, चमकीले गैस के बादल और धूल की गहरी लकीरें दिखाई दे रही हैं, जो एक गहरे, तारामय ब्रह्मांड में स्थित है।


भूमिका: दो दुनिया, एक खोज

मनुष्य की चेतना के उदय से ही एक प्रश्न सदा उसके साथ रहा है - 'यह सब कहाँ से आया?' ब्रह्मांड की उत्पत्ति, इसका स्वरूप और हमारा इसमें स्थान, यह एक ऐसी पहेली है जिसे सुलझाने के लिए मानव जाति ने दो प्रमुख मार्ग अपनाए हैं: आध्यात्मिक ज्ञान (धर्मग्रंथों के माध्यम से) और भौतिक विज्ञान (तर्क और प्रयोग के माध्यम से)। सदियों तक ये दोनों मार्ग समानांतर चलते प्रतीत हुए, जिनकी भाषा, शैली और निष्कर्ष अलग-अलग थे।

लेकिन 20वीं सदी में क्वांटम फिजिक्स (Quantum Physics) के आगमन ने विज्ञान को एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया, जहाँ उसके निष्कर्ष प्राचीन धर्मग्रंथों, विशेषकर वैदिक दर्शन की गहराइयों से प्रतिध्वनित होते प्रतीत होते हैं। यह लेख इसी आश्चर्यजनक संगम की पड़ताल करता है कि कैसे हमारे ऋषि-मुनियों की अनुभूति और आधुनिक वैज्ञानिकों की खोज एक ही सत्य की ओर इशारा कर रही है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: बिग बैंग और क्वांटम जगत

आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान की नींव बिग बैंग सिद्धांत (Big Bang Theory) पर टिकी है। इसके अनुसार, लगभग 13.8 अरब साल पहले हमारा संपूर्ण ब्रह्मांड एक अकल्पनीय रूप से गर्म, सघन और सूक्ष्म बिंदु में समाहित था, जिसे 'सिंगुलैरिटी' (Singularity) कहा जाता है। फिर एक महाविस्फोट हुआ और उसी क्षण से स्थान, समय और ऊर्जा का विस्तार शुरू हुआ।

लेकिन यह कहानी का केवल एक हिस्सा है। जब हम उस सिंगुलैरिटी के स्तर पर जाते हैं, तो सामान्य भौतिकी के नियम काम करना बंद कर देते हैं। यहाँ क्वांटम फिजिक्स का प्रवेश होता है। क्वांटम जगत हमें बताता है कि:

  • पदार्थ ठोस नहीं है: जिसे हम ठोस पदार्थ समझते हैं, वह आणविक स्तर पर लगभग 99.99% खाली जगह है। कण वास्तव में ऊर्जा के कंपन या संभाव्यता की तरंगें (Probability Waves) हैं।

  • अनिश्चितता का सिद्धांत (Uncertainty Principle): हम एक ही समय में किसी कण की सटीक स्थिति और उसकी गति दोनों को नहीं जान सकते।

  • पर्यवेक्षक प्रभाव (Observer Effect): क्वांटम स्तर पर, किसी कण का व्यवहार इस बात पर निर्भर करता है कि उसे कोई देख (माप) रहा है या नहीं। अवलोकन करने का कार्य ही वास्तविकता को प्रभावित करता है।

  • क्वांटम उलझाव (Quantum Entanglement): दो कण इस तरह से जुड़ सकते हैं कि ब्रह्मांड के विपरीत छोर पर होने पर भी, एक पर की गई क्रिया का प्रभाव तुरंत दूसरे पर पड़ता है। यह 'एकता' या 'अद्वैत' की भावना को दर्शाता है।

धर्मग्रंथों का दृष्टिकोण: सृष्टि की रचना

जब हम वेदों, उपनिषदों और पुराणों जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों को खंगालते हैं, तो हमें सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में आश्चर्यजनक रूप से गहरे और दार्शनिक विचार मिलते हैं।

  • ऋग्वेद का नासदीय सूक्त: यह सूक्त सृष्टि की शुरुआत से भी पहले की स्थिति का वर्णन करता है। यह कहता है:

    नासदासीन्नो सदासात्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत्।

    अर्थात्, "तब न 'असत्' (Non-existence) था, न 'सत्' (Existence) था। न अंतरिक्ष था, न आकाश। सब कुछ अव्यक्त और अचिन्त्य था।"

    यह स्थिति बिग बैंग से पहले की 'सिंगुलैरिटी' की वैज्ञानिक अवधारणा के बहुत करीब है, जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता।

  • हिरण्यगर्भ और ब्रह्मांडीय अंडा: कई पुराणों में यह वर्णन है कि सृष्टि की शुरुआत एक 'हिरण्यगर्भ' (स्वर्ण गर्भ) से हुई। यह एक बिंदु था जिसमें संपूर्ण सृष्टि की क्षमता निहित थी और जब यह फूटा तो ब्रह्मांड का विस्तार हुआ। यह बिग बैंग की 'सिंगुलैरिटी' के रूपक का एक अद्भुत समानांतर है।

  • शब्द ब्रह्म और ॐ का नाद: भारतीय दर्शन यह मानता है कि सृष्टि की उत्पत्ति एक मौलिक कंपन या ध्वनि से हुई, जिसे 'शब्द ब्रह्म' या 'ॐ' का नाद कहा जाता है। यह विचार कि सृष्टि का आधार ऊर्जा का कंपन है, क्वांटम फिजिक्स के 'स्ट्रिंग थ्योरी' से मेल खाता है।

  • प्रलय और सृष्टि के चक्र: हिंदू ब्रह्मांड विज्ञान समय को रैखिक (linear) नहीं, बल्कि चक्रीय (cyclical) मानता है। यहाँ सृष्टि और प्रलय के अनंत चक्र चलते रहते हैं। विज्ञान में भी 'ऑसिलेटिंग यूनिवर्स' जैसी परिकल्पनाएं हैं, जो मानती हैं कि ब्रह्मांड फैलता है और फिर सिकुड़कर वापस एक बिंदु में समा जाता है।

कहाँ मिलते हैं विज्ञान और अध्यात्म: एक तुलना

क्वांटम फिजिक्स का सिद्धांतवैदिक/आध्यात्मिक अवधारणाविश्लेषण
सिंगुलैरिटी (Singularity)हिरण्यगर्भ / अव्यक्त ब्रह्मदोनों एक ऐसे आदिम, एकात्मक बिंदु का वर्णन करते हैं जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड की क्षमता अव्यक्त रूप में मौजूद थी।
बिग बैंग (Big Bang)ॐ का नाद / शब्द ब्रह्म का स्फोटदोनों ही मानते हैं कि सृष्टि की शुरुआत एक मौलिक ऊर्जा, विस्फोट या कंपन से हुई जिसने विस्तार को जन्म दिया।
पर्यवेक्षक प्रभाव (Observer Effect)दृष्टा और सृष्टि / 'अहं ब्रह्मास्मि'विज्ञान कहता है कि चेतना वास्तविकता को प्रभावित करती है। अध्यात्म कहता है कि चेतना ही वास्तविकता का निर्माण करती है।
क्वांटम उलझाव (Entanglement)वसुधैव कुटुम्बकम् / ब्रह्म की एकताक्वांटम भौतिकी कणों के गहरे जुड़ाव को दिखाती है। अध्यात्म सिखाता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड एक ही चेतना का विस्तार है।
पदार्थ का तरंगी स्वरूपमाया का सिद्धांतविज्ञान कहता है कि ठोस जगत ऊर्जा की तरंगें हैं। अद्वैत वेदांत कहता है कि यह दृश्य जगत 'माया' है, एक भ्रम है।

अंतर और निष्कर्ष

यह कहना गलत होगा कि हमारे ऋषियों के पास त्वरक या रेडियो टेलीस्कोप थे। दोनों मार्गों के बीच सबसे बड़ा अंतर उनकी कार्यप्रणाली (Methodology) का है।

  • विज्ञान 'बहिर्मुखी' है। वह बाहरी दुनिया का अवलोकन करता है, प्रयोग करता है, और जानना चाहता है कि 'कैसे' (How)

  • अध्यात्म 'अंतर्मुखी' है। वह ध्यान और समाधि के माध्यम से चेतना की गहराइयों में उतरता है, और जानना चाहता है कि 'क्यों' (Why)

इसके बावजूद, यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि दो अलग-अलग रास्तों पर चलकर खोजी गई वास्तविकता इतनी समान है। ऐसा प्रतीत होता है कि क्वांटम फिजिक्स ने वैज्ञानिक भाषा में उन्हीं सत्यों को उजागर किया है जिन्हें प्राचीन ऋषियों ने चेतना की भाषा में अनुभव किया था।

शायद विज्ञान और अध्यात्म एक ही परम सत्य के दो अलग-अलग पहलू हैं।

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