ताजमहल और ‘तेजोमहालय’ विवाद: क्या है सच
ताजमहल और ‘तेजोमहालय’ विवाद: समयरेखा और विश्लेषण
ताजमहल, जिसे मुग़ल बादशाह शाहजहाँ ने 1632–1648 में अपनी पत्नी मुमताज की स्मृति में बनवाया था, विश्व धरोहर स्थल है। इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का सामान्य मत है कि यह एक भव्य मकबरा है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में भाजपा नेताओं और हिन्दू संगठनों की ओर से यह दावा उठाया गया कि ताजमहल मूलतः एक प्राचीन शिव मंदिर ‘तेजो महालय’ था। इस रिपोर्ट में दावे के आरंभ से 2025 तक के विवाद की संपूर्ण जानकारी प्रस्तुत की गई है।
प्रारंभिक दावे
इस विवाद की शुरुआत 1960-70 के दशक में इतिहासकार पी. एन. ओक से मानी जाती है। 1989 में ओक ने अपनी किताब “Taj Mahal: The True Story” में लिखा कि शाहजहाँ के समय के पहले इसी स्थान पर चौथी सदी में राजा परमार्दी देव ने भगवान शिव के लिए एक मंदिर-पैलेस (तेजो महालय) बनवाया था। उनका कथन था कि ‘ताज महल’ नाम संस्कृत ‘तेजो महालय’ का भ्रष्ट उच्चारण है।
ओक ने इस आधार पर 2000 में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की, लेकिन तीन न्यायाधीशों की पीठ ने उसे “गलतफहमी” बताए बिना खारिज कर दिया और टिप्पणी की कि ओक के दावे में “उल्टी-सीधा फितूर (चिड़िया की तरह)” है। इस तरह, शुरूआती दावे के रूप में ओक का सिद्धांत सामने आया और वह विवाद में आधार बन गया।
प्रमुख समर्थक और तर्क
समय के साथ विभिन्न राजनैतिक और सामाजिक विचारकों ने ओक के ‘तेजो महालय’ सिद्धांत को दोहराया और प्रचारित किया। उनके प्रमुख तर्क और कथित साक्ष्य निम्न हैं:
- पी.एन. ओक: ओक ने ताजमहल को शिव मंदिर होने का पुरज़ोर दावा किया। उन्होंने कहा कि शाहजहाँ ने मूल मंदिर को ही मकबरे में बदला और नाम बदलकर ‘ताज महल’ रख दिया। (उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी।) 
- विनय कटियार (2017): भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने 2017 में सार्वजनिक रूप से कहा कि ताजमहल एक ‘तेजो महालय’ नामक शिव मंदिर था जिसे हिन्दू राजा ने बनवाया था। इस बयान ने विवाद को फिर से सरोकारों में ला दिया। 
- कपिल मिश्रा (2020): दिल्ली के भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि “सभी वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि ताज महल तेजो महालय, एक प्राचीन हिन्दू वैदिक मंदिर है”। उन्होंने वास्तुशास्त्रीय तर्क दिए, जैसे इमारत की अष्टकोणीय आकृति को हिन्दू परम्परा से जोड़ना। 
- राजनेश सिंह (2022): अयोध्या जिले के भाजपा मीडिया प्रमुख रजनीश सिंह ने मई 2022 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें ताजमहल के बंद पड़े 22 कमरों को खोलकर हिंदू देवताओं की मूर्तियाँ खोजने की मांग की गई थी। (उच्च न्यायालय ने इस याचिका को गैर-न्यायिक बताते हुए खारिज कर दिया।) 
- दिया कुमारी (2022): राजस्थान की सांसद व जयपुर के राजपरिवार की सदस्य दिया कुमारी ने मई 2022 में कहा कि ताजमहल का जिस जमीन पर निर्माण है, वह मूल रूप से उनके पूर्वजों की जायदाद थी। उनका तर्क था कि 17वीं शताब्दी में राजा जय सिंह से यह भूमि शाहजहाँ को ले ली गई थी और इसमें उचित मुआवजा नहीं दिया गया। 
इन समर्थकों द्वारा ज्यादातर ओक का अध्ययन और पुरात्वविज्ञानीय दावे गढ़े गए हैं – जैसे कि वास्तुशिल्प विशेषताएँ (गुंबद के चारों ओर छोटे गुंबद दिखाकर हिन्दू मंदिरों से मिलती-जुलती वास्तु, गुंबद पर कमल आकृति) और धर्मग्रंथ (विष्वकर्मा वास्तुशास्त्र में तेजोमणि लिंग का उल्लेख)। इनमें से अधिकांश कथित “साक्ष्य” का कोई स्वतंत्र प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन इनने विवाद को चलाया है।
मुख्यधारा का खंडन
इस दावे का सामना मुख्यधारा के इतिहासकारों और पुरातत्व विशेषज्ञों ने मज़बूती से किया है। उनके तर्क इस प्रकार हैं:
ऐतिहासिक अभिलेख और यात्रा वृत्तांत
काशी के इतिहासकार सैयद अली नादीम रेज़वी जैसे विद्वान बताते हैं कि 17वीं सदी के मुग़ल दरबार के फारमान, राजपूताना (बिकानेर, जयपुर) के अभिलेखों और यूरोपीय यात्रियों (बर्नियर, मनुच्ची, टैवारिनियर आदि) की यात्रावृतियों में ताजमहल के निर्माण का पूरा ब्यौरा है। उदाहरण के लिए, राजस्थान के अभिलेखों में शाहजहाँ और जयसिंह के बीच 1632 में जमीन के आदान-प्रदान का फारमान और रसीदें सुरक्षित हैं। ये दस्तावेज़ स्पष्ट करते हैं कि शाहजहाँ ने मुमताज़ के मकबरे के लिए ही सफेद संगमरमर में ताजमहल बनवाया था। रेज़वी ने कहा, “ऐसे किसी भी दस्तावेज़ में ताजमहल की साइट पर कभी मंदिर होने का उल्लेख नहीं है।”
संरचनात्मक विश्लेषण
पुरातत्वविदों और वास्तुविशेषज्ञों के अनुसार ताजमहाल की वास्तुकला इस्लामिक शैली की है। यूनेस्को भी कहता है कि ताजमहल “मुसलमान वास्तुकला का रत्न” है। शोधकर्ताओं ने इंगित किया है कि सफेद संगमरमर, बड़ी गुंबददार संरचना और कुरान की आयतों की नक्काशी इस्लामिक भवनों से मेल खाती है।
सरकारी और पुरातात्विक रिपोर्ट
पुरातत्व सर्वेक्षण भारत (ASI) ने भी कोर्ट में स्पष्ट किया कि ताजमहल कोई मंदिर नहीं है।
- 2017 में ASI ने अदालत में बयान दिया कि ताजमहल “एक मकबरा ही है, कोई मंदिर नहीं” और ‘तेजो महालय’ नामक कोई मंदिर कभी मौजूद नहीं था। 
- उसी वर्ष संसद में संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि ताजमहल मंदिर होने का कोई तथ्यसिद्ध प्रमाण नहीं है। 
- केंद्रीय सूचना आयोग ने RTI के ज़रिए पूछा था तो ASI ने लिखा कि उसके पास ‘तेजो महालय’ से जुड़ा कोई रिकॉर्ड नहीं है। 
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मई 2022 में राजनेश सिंह की याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह “गैर-न्यायिक मुद्दा” है और इतिहास के विषयों को अदालत में नहीं, विद्वानों की खोज से हल होना चाहिए। 
कुल मिलाकर, मुख्यधारा के विद्वानों और संस्थानों ने इस दावे का खंडन किया है और कहा है कि ताजमहल के निर्माण का इतिहास दस्तावेज़ों में स्पष्ट रूप से दर्ज है।
कानूनी घटनाक्रम
विवाद से जुड़े प्रमुख विधिक कदम इस प्रकार रहे:
- 2000: पी. एन. ओक ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी कि ताजमहल एक शिवमंदिर था। इस याचिका को “ग़लत फ़हमी” बताते हुए खारिज कर दिया गया। 
- 2005: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक पीठ ने ताजमहल के विवादित इतिहास पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती याचिका को खारिज कर दिया था, यह कहते हुए कि यह “विवादास्पद तथ्य” अदालत के बाहर का मामला है। 
- 2015 (आगरा): छह अधिवक्ताओं ने आगरा की जिला अदालत में याचिका दायर की कि ताजमहल एक हिन्दू मंदिर “तेजो महालय” है और हिंदुओं को दर्शन-अर्चना की इजाजत दी जाए। 
- 2017: आगरा कोर्ट में सुनवाई के दौरान ASI ने जवाब दाखिल किया कि ताजमहल मकबरा है, मंदिर नहीं। इसी साल संसद में संस्कृति मंत्रालय ने लोकसभा में बताया कि ताजमहल के मंदिर होने के कोई प्रमाण नहीं हैं। 
- 2018: ASI ने अदालत में शपथपत्र दाखिल किया कि शाहजहाँ ने ही अपनी पत्नी के लिए ताजमहल बनवाया था। 
- 2022 (इलाहाबाद उच्च न्यायालय): मई 2022 में राजनेश सिंह की याचिका पर अदालत ने कहा कि यह मसला “अदालत के बाहर शोध का” है और याचिका स्वीकार्य नहीं है। 
- 2022 (सर्वोच्च न्यायालय): उच्च न्यायालय के बाद राजनेश सिंह ने अक्टूबर 2022 में सर्वोच्च न्यायालय में भी याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने ताजमहल के इतिहास की ‘वास्तविक जाँच’ की मांग की। 
मीडिया कवरेज और जन-चर्चा
यह विवाद वर्षों से सोशल मीडिया और समाचार पत्रों में गर्म बना रहा है। व्हाट्सएप और ट्विटर पर वर्षों से तेजो महालय वाली अफवाहें घूमती रही हैं। कई फैक्ट-चेक वेबसाइटों ने भी इन दावों को जाँचकर झूठा बताया है।
अक्टूबर 2025 में जब फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ का विवादित पोस्टर जारी हुआ, तब चर्चा चरम पर पहुंची। पोस्टर में गुंबद से शिवलिंग निकलता दिखाया गया, जिस पर तीखी आलोचना हुई। फिल्म के निर्माताओं ने हालांकि स्पष्ट किया कि फिल्म का विषय धार्मिक नहीं, बल्कि इतिहास पर आधारित है।
प्रमुख समाचार चैनलों और अख़बारों ने इस विवाद को व्यापक कवर किया है। इतिहासकार विलियम डेलिंप्रे ने इस सिद्धांत को “दुर्भावनापूर्ण बकवास” बताया, तो रुचिका शर्मा ने इसे “बोगस मिथक” करार दिया। कुल मिलाकर, जन-चर्चा में दोनों पक्ष की राय सामने आती रही है, लेकिन मीडिया ने अक्सर विशेषज्ञों के हवाले से यह बताया है कि ‘तेजो महालय’ दावे के पीछे कोई ठोस ऐतिहासिक आधार नहीं है।
वर्तमान स्थिति (2025)
2025 में भी यह विवाद जारी है, लेकिन सरकारी दृष्टिकोण और विद्वानों की राय स्पष्ट हैं। संस्कृति मंत्रालय और ASI की ऑफिसियल स्थिति यथावत है कि ताजमहल शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया मकबरा है। अक्टूबर 2025 तक अदालत ने इस पर कोई नया आदेश नहीं दिया है। जबकि कुछ राजनीतिक नेता समय-समय पर दावे उठाते रहते हैं, अधिकांश इतिहासकार और पुरातत्वविद इसे निराधार मानते हैं।
डेलिंप्रे बताते हैं कि ताजमहल का निर्माण सुरक्षित रूप से दस्तावेज़ों में दर्ज है और इसे हिंदू संरचना बताना “बेतुका और दुर्भावनापूर्ण” है। रेज़वी और अन्य शोधकर्ताओं ने कहा है कि ताजमहल की कहानी मुग़ल काल के अभिलेखों एवं यात्रियों की रिपोर्टों से प्रमाणित है। इस प्रकार, 2025 तक विवाद मुख्यतः राजनीतिक बहस का विषय बना हुआ है, जबकि ऐतिहासिक तथ्य ताजमहल को शाहजहाँ का मकबरा ही साबित करते हैं।

 
 
